वाह! रे आम आदमी
दिल्ली
में प्रचंड बहुमत के बाद 14
फरवरी 2015
को अरविंद केजरीवाल
ने दिल्ली की तस्वीर बदलने
के लिए, व्यवस्था
की बुराइयों को दूर करने के
लिए, पांच
साल में 100 साल
पुरानी दिल्ली को नई सूरत देने
की शपथ ली। अपनी सोच में जनता
की भागीदारी को भी शामिल किया।
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार
पर ब्रेक लगाने के लिए दिल्ली
वालों को स्टिंग का तरीका भी
सिखाया था। इस सीख और नसीहत
में स्टिंग ऑपरेशन के तरीके
भी बताए गए। केजरीवाल की इस
सीख में कहीं भी उस गाइडलाइन
का जिक्र नहीं था जिसकी दुहाई
अब दी जा रही है। जिक्र इसलिए
भी नहीं था क्योंकि ये बात वही
केजरीवाल कह रहे थे जिनके स्वर
आम आदमी पार्टी के लिए हरिश्चंद्र
के वाक्य के समान हैं। महीने
भर का ही तो फर्क है। दिल्ली
से भ्रष्टाचार दूर करने के
लिए जनता को स्टिंग के लिए
तैयार कर रहे थे,
लेकिन अब एक स्टिंग
सामने आया है। जिसने सवालों
के घेरे में उस नैतिकता को कैद
कर दिया है जिसकी बुनियाद पर
आप ने जनसमर्थन की मीनार खड़ी
की थी। आम आदमी पार्टी के पूर्व
विधायक राजेश गर्ग और अरविंद
केजरीवाल के बीच की इस बातचीत
ने आप के नैतिक मूल्यों पर
सवाल उठा दिये। इस बातचीत में
दिल्ली में किसी भी तरह से
सरकार बनाने के लिए जुगाड़
की तलाश की जा रही है। 2013
के दिल्ली चुनाव
में कांग्रेस की कमर टूटी थी
इस बातचीत में उसके विधायकों
को तोड़ने की कोशिश हो रही थी।
बात गंभीर है इसलिए इसपर सवाल
भी उठने में तनिक भी देरी नहीं
हुई। पूरा संविधान याद आ गया।
संविधान की दफा...
धारा...
गाइडलाइन...
न्यायपालिका....
व्यवस्थापिका....
कार्यपालिका सबकुछ।
सभी की भूमिका और सभी के तय
किये गए मानदंड सामने आ गए।
स्टिंग की आंच जबतक पड़ोस के
घर को झुलसाती थी तो सवाल यही
चेहरे करते थे। लेकिन इसबार
आंच इनके घर में लगी है जिसमें
घिरे हैं इनकी पार्टी के मुखिया
तो दुहाई और सफाई के लिए दफा
और धाराओं को बचाव के लिए
इस्तेमाल कर लिया गया। सियसत
की ये सहूलियत हर किसी को नसीब
नहीं होती। ये मामला अभी शांत
भी नहीं हुआ था कि एक और स्टिंग
का दावा किया गया..
इस बार सवालों के
घेरे में पार्टी के कद्दावर
नेता संजय सिंह थे...दिल्ली
में 2015 के
दो महीने बीत चुके हैं। तीसरे
महीने का दूसरा हफ्ता चल रहा
है। लेकिन दिन महीने और हफ्ते
के इस हिसाब ने आप का हिसाब
गड़बड़ा दिया है। गड़बड़ी
इतनी हुई कि सवालों ने पार्टी
के बड़े नेताओं का पीछा करना
शुरु कर दिया। मार्च के पहले
हफ्ते से शुरु करें तो पार्टी
के बड़े नेताओं के लिए विवादित
नेता हो चुके योगेंद्र यादव
के खिलाफ एक फोन की रिकॉर्डिंग
सामने आई। जिसमें बात ये की
गई कि योगेंद्र यादव ने पार्टी
के खिलाफ अखबारों में खबर
छपवाई। योगेंद्र यादव सफाई
देते रहे टेप की सत्यता पर
इन्होंने भी सवाल उठाए थे।
लेकिन योगेंद्र यादव की ये
दलील और दुहाई आप के नेताओं
की सोच को बदल न सकी। वो मन बना
चुके थे फैसला भी ले चुके थे।
इंतजार केवल राष्ट्रीय
कार्यकारिणी की बैठक में उस
फैसले पर मुहर लगने की थी।
पार्टी लाइन के खिलाफ काम करने
के लिए पीएसी से योगेंद्र यादव
और प्रशांत भूषण को पीएसी से
बाहर कर दिया गया। ना टेप की
जांच हुई ना ही सत्यता का
परीक्षण। योगेंद्र के खिलाफ
जो टेप सामने आया था उसका कोई
शक्ल नहीं था। केवल दो आवाज
थी। हफ्ते भर बाद एक और टेप
सामने आया। इसका भी कोई सूरत
नहीं था। केवल दो आवाज सुनाई
दे रही थी। लेकिन फर्क काफी
बड़ा था। क्योंकि एक आवाज आप
के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल
की थी और दूसरी आप के पूर्व
विधायक राजेश गर्ग की।11
मार्च की सुबह आप
के दफ्तर से लेकर आप के नेताओं
के घर तक सवलों ने अपना रुख
किया था। बोलने के लिए आप के
पास भी कुछ खास बचा नहीं था।
सिवाय इसके कि ये कह दें कि
टेप की सत्यता तो प्रमाणित
हुई ही नहीं है। संजय सिंह आप
के वो सिपाही हैं जो दिखते तो
बगैर हथियार के हैं लेकिन आप
के वज्र गृह की चाबी अपने साथ
लेकर घूमते हैं। अब तक के स्टिंग
और खुलासों में अंबानी से लेकर
गडकरी और वाड्रा से लेकर दिल्ली
जलबोर्ड तक पर सवाल उठाए गए
थे। लेकिन सवाल खुद पर उठे तो
सत्यता और प्रमाणिकता की दुहाई
दे दी। केजरीवाल के सामने तो
पार्टी के बड़े नेता सीना
तानकर खड़े हो गए। लेकिन ओखला
से कांग्रेस के पूर्व विधायक
आसिफ मोहम्मद खान अपनी चमत्कारी
घड़ी का चमत्कार सामने लेकर
आ गए। कह दिया कि 2014
में 49
दिनों बाद सत्ता
से जुदाई के बाद एक बार फिर
सत्ता में वापसी के लिए उनसे
भी संपर्क किया गया। इस बायन
के तुरंत बाद मीडिया के सामने
संजय सिंह हाजिर थे और सवाल
आसिफ मोहम्मद पर उठा रहे थे
कि इस बात की क्या गारंटी है
कि आसिफ सच बोल रहे हैं। क्योंकि
इनकी सोच है कि सच का आसरा तो
आप के करीब है। दूसरों का दावा
तो बस बकवास है। आम आदमी पार्टी
के बड़े नेता स्टिंग के जाल
में घिरे हैं। सवाल हर तरफ से
किये जा रहे हैं। लेकिन जवाब
कौन देगा। सभी व्यस्त हैं।
कुछ कहने के नाम पर बस इतना
कहा जा रहा है कि इन खुलासों
और सवालों में सत्यता का अभाव
है। खुद को बचाने के लिए आप के
नेता जो भी बहाने ढूंढ रहे हों
लेकिन आरोपों की जिस चार दीवारी
के बीच आम आदमी पार्टी घिरी
है, उस
पर लिखे आरोपों की लिखावट इनकी
खुद की है, उस
पर लिखे एक एक शब्दों को सियासत
की शब्दकोष में आप ने खुद ही
लिखा था,लेकिन
आज खुद उन शब्दों के आयामों
को भूलते से नजर आ रहे है।
स्टिंग को आम आदमी ने हथियार
बनाया, एक
बार नहीं, बार
बार उसी बात को दोहराया,
चाहे मंच रैली का
हो या शपथ का मचान स्टिंग की
ताकत को बुलंदी से उठाया,
लेकिन अब ये तो खुद
ही घिरते नजर आ रहे है...
इस स्टिंग से निकले
शब्द सवाल उठा रहे है सियासत
की स्टाईल पर और सवाल उठा रहे
है सियासतदानों की नैतिकता
पर। खैर इन सब के बीच इस स्टिंग
की पूरी पटकथा पर अब नए सवालों
ने अपनी जगह बना ली है,
साथ ही ये भी साप
कर दिया है कि राजनीति में
रिश्तों की उम्र बहुत छोटी
होती है।