Saturday, 27 August 2011

अन्ना फॉरेन मीडिया



अन्ना का नाम अब सात समंदर पार भी किसी तअर्रुफ का मोहताज नहीं रहा, बल्कि देशी मीडिया की तरह विदेशी मीडिया में भी इस नए जननायक की खासी चर्चा है-
केवल देश भर के मीडिया में ही नहीं, विदेशी मीडिया में भी अन्ना अन्ना ही गूंज रहा है, सारी दुनिया में इस अहिंसक क्रांति की चर्चा जोरों पर है । मशहूर टाइम मैगजीन ने लिखा है कि अन्ना के साथ खड़े लोग उनके हार्डकोर कार्यकर्ता नहीं बल्कि आम भारतीय हैं, जो अपना अपना काम छोड़कर इस मुहिम में कूद पड़े हैं, वो केवल भ्रष्टाचार से ही नहीं बल्कि सरकार के रवैये से भी नाराज हैं, क्योंकि सरकार तो भ्रष्टाचार से लड़ाई पहले ही हार चुकी है। पाकिस्तान के लीडिंग अखबार डॉन के मुताबिक इस आंदोलन ने भारतवासियों की जिंदगी बदल दी है उन्हें जीने का नया मकसद मिल गया है, और आने वाले कुछ दिन भारत के लिए काफी अहम साबित होने वाले हैं। द टेलीग्राफ कहता है कि गांधी टोपी की मांग ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसे पहनने वाले नए गांधी के खिताब से नवाजे जा रहे हैं। बैंकाक पोस्ट के मुताबिक थाईलैंड में भी आंदोलन की गूंज है, अखबार का कहना है कि इस मुहिम के क्या परिमाम होंगे अभी कहना मुश्किल है पर इतना तो तय है कि सरकार इससे जरूर हिल गई है, इसी तरह सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड इस आंदोलन को आधुनिक भारत का सबसे बड़ा आंदोलन करार देते हुए कहता है कि अन्ना हजारे तेजी से बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन का चेहरा बन गए हैं ये कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
मतलब ये कि जननायक बन कर उभरे अन्ना सिर्फ भारत में ही लोकप्रिय नहीं हो रहे, बल्कि सात समंदर पार भी इनके प्रशंसकों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, और अन्ना का नाम दुनिया की उन कुछ गिनी चुनी हस्तियों में शुमार हो चुका है जिन्होंने संसार को एक नई दिशा देने का काम किया है।

अन्ना की आंधी


          कौन कहता है कि आकाश में सूराख नहीं हो सकता
               एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां जैसे आज चरितार्थ हो चली हैं
   अभी हाल की ही बात है जबकि देश भ्रष्टाचार से लड़ते लड़ते निराश हो चुका था, लोग कहने लगे थे कि इस बीमारी का अब इलाज नहीं हो सकता, यहां तक कि लोग इसे स्वीकार करने की भी बात करने लगे थे लोगों का ये भी कहना था कि घूस को क्यों न सुविधा शुल्क का नाम दे दिया जाय, इतना ही समाज को अरबों के घोटालों पर अब अचंभा होना तक बंद हो गया था, तभी निराशा के इसी अंधेरे के बीच से फूटी आशा की एक किरण, फलक पर उभरा एक बुजुर्ग का चेहरा, समाधान और विश्वास की एक जीवंत प्रतिमा, और चल पड़ा कारवां उसकी एक आवाज पर हिल गई अड़ियल सत्ता और लोगों ने लगा दी जान की बाजी       सवाल है कि आखिर इस बुजुर्ग की आवाज में ऐसा कौन सा जादू है कि सारा देश उसकी तरफ खिंचा चला आ रहा है, आखिर वो कौन सी ताकत है कि जिसके आगे सारी ताकतें नतमस्तक होने पर मजबूर हैं, वो ताकत है करनी कथनी के अभेद की, वो ताकत है सच्चाई की, वो ताकत है संवेदना की
अन्ना खुद कहते हैं कि एक दाने को तो त्याग करना ही पड़ता है तभी सैकड़ों दानों वाला भुट्टा पैदा होता है , हुआ भी यही, आशा की एक किरण उठी और देखते ही देखते बदल गई परिवर्तन के दमकते सूरज में, उठ खड़ा हुआ सारा देश
बह चली वो बयार वो आंधी जो जहां से गुजरी हजूम के हुजूम, काफिले के काफिले अपने साथ लेती चली गई
शायद इसी मिसाल के लिए मजरूह सुल्तानपुरी ने कभी लिखा था-
मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया... ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

गांघीगीरी की नई मिसाल


धरती प्यार की, सहकार की, और अहिंसा की, धरती जिसने दुनिया को केवल शून्य की सौगात ही नहीं सौंपी बल्कि सौंपा निहत्थे होने का हथियार जिसने पूरी दुनिया में एक बार फिर अपना परचम लहराया। इतिहास गवाह है फ्रांस और रूस की क्रांति का, इतिहास गवाह है इटली और आयरलैंड के स्वाधीनता संग्राम का, इतिहास गवाह है बीसवीं सदी के तीसरी दुनिया के सबसे बड़े माओ विद्रोह का लेकिन ये सारी क्रांतियां एक तरफ और भारत की बात एक तरफ।  दुनिया में हुई अब तक एक भी ऐसी क्रांति नहीं जो हथियारबंद लोगों से बिना हथियारों के ही लड़ी गई हो और जीती गई

ये तो हुई गुजरे हुए कल की बात लेकिन आज की दुनिया भी इस वक्त एक ऐसी ही मिसाल की साक्षी है जिस पर हर पल सबकी नजरें लगी हुई हैं। दुनिया के सामने आज एक तरफ सीरिया, मिस्र और लीबिया जैसे खूनी विद्रोह हैं तो दूसरी तरफ हिंदुस्तान की नजीर जहां लाखों लोग हाथों में हथियारों की जगह बैनर, पोस्टर, तिरंगे और रौशनी के काफिले सजाए अपनी बात बुलंद कर रहे हैं,और इन सब में सबसे खास बात ये है कि इन क्रांतिवीरों में सबसे बड़ी संख्या में वही युवा शामिल हैं जो जोश के चक्कर में होश गवां बैठने के लिए अक्सर बदनाम किए जाते हैं लेकिन मजाल क्या कि किसी ने भी संयम तोड़ने की बात भी सोची हो। साफ है कि अगर नेतृत्व की अपील में ताकत हो तो, दिशा हो, और मिसाल बनने की काबलियत हो तो किसी भी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ा जा सकता है। चिंगारियों से घर जलाने के बजाय घर को रौशन भी किया जा सकता है, और गांधी के बाद दूसरे गांधी के भी इसी प्रयोग पर आज सारी दुनिया की निगाहें लगी हैं, साथ ही छिड़ गई है फिर नई बहस कि क्या प्रेम की क्रांति ही दुनिया की भावी क्रांतियों की एक मात्र अगुआ होगी, जाहिर है जननायक अन्ना के जरिये भारत ने फिर से ऐसी ही अगुआई कर दुनिया की राह आसान कर दी है

Friday, 26 August 2011

सरकारी लोकपाल और जनलोकपाल



क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए? 
टीम अन्ना का नजरिया
प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर लोकपाल की 7 सदस्य बेंच शिकायत की सुनवाई करेगी। अगर पहली नज़र में मामले में सुबूत सामने आते हैं तो लोकपाल इसकी जांच करेगा। अगर पहली नज़र में सुबूत नहीं मिले तो शिकायत करने वाले को सज़ा मिलेगी।
सरकार का नज़रिया
प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद सीबीआई इसकी जांच करेगी और गलत पाए जाने पर एफआईआर दर्ज की जाएगी। यहां गौर करने वाली बात है कि सीबीआई सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के तहत आती है।

क्या निचली नौकरशाही को शामिल किया जाए? 
टीम अन्ना का नजरिया
हां, लोकसेवक माने जाने वाले सभी सरकारी अधिकारी इसके तहत आएंगे। इसमें सभी स्तरों के नौकरशाह शामिल हैं।
सरकार का नजरिया
इसके तहत सिर्फ ग्रुप ए के नौकरशाहों को शामिल किया जाए।


क्या सांसद इसके दायरे में आएंगे?
टीम अन्ना का नजरिया
हां, सदन में बोलने या वोट देने के बदले घूस का आरोप लगने पर लोकपाल की सात सदस्यीय बेंच (इसमें ज़्यादातर सदस्य न्यायपालिका से होंगे) इसकी जांच करेगी। अगर आरोप झूठा पाया गया तो शिकायत करने वाले को सज़ा। लेकिन पहली नज़र में सुबूत मिलने पर लोकपाल बेंच एफआईआर दर्ज करने की इजाजत देगी। पुलिस या सीबीआई मामले की जांच करेगी। अगर आरोप सही पाए गए तो मुकदमा चलेगा।

सरकार का नजरिया
नहीं, लोकपाल सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच नहीं करेगा। ऐसे आरोपों की जांच संसद खुद करेगी।


क्या न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए?
टीम अन्ना का नजरिया
हां, जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर पहली नज़र में अगर आरोप बेबुनियाद लगे और सुबूत नहीं मिले तो शिकायत करने वाले के खिलाफ सज़ा। लेकिन सात सदस्यीय लोकपाल बेंच पहली नज़र में सुबूत मिलने पर एफआईआर दर्ज करने की इजाजत देगी। पुलिस या सीबीआई मामले की जांच करेगी। अगर आरोप सही पाए गए तो मुकदमा चलेगा।  

सरकार का नज़रिया
नहीं, जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप की जांच को जुडिशियल अकांउटिबिलिटी बिल (जेएबी) में शामिल किए जाने का प्रस्ताव। तीन सदस्यों (दो जज और एक उसी कोर्ट का रिटायर्ड चीफ जस्टिस, जिससे उस जज का संबंध हो, जिस पर आरोप लगे हैं)  की समिति जांच करेगी। अगर  पहली नज़र में सुबूत मिलते हैं तो समिति एफआईआर दर्ज करने का आदेश देगी। लेकिन सरकार ने जेएबी का जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसमें कहा गया कि जज के खराब बर्ताव की जांच की जा सकती है लेकिन उसके खिलाफ घूस लेने के आरोप की नहीं।

लोकायुक्त 
टीम अन्ना का नजरिया
एक ही बिल के जरिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए।

सरकार का नजरिया
सिर्फ केंद्र में लोकपाल। राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लोकपाल बिल के तहत राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति पर ऐतराज जताया है।

सभी सरकारी विभागों में सिटिजन चार्टर का गठन किया जाए ताकि लोगों की शिकायतों का निपटारा हो सके?  
टीम अन्ना का नज़रिया
हां, हर सरकारी विभाग का सिटिजन चार्टर हो, जिसमें यह बताया जाए कि कौन सा अधिकारी, क्या काम और कितने दिन में करेगा। अगर कोई अधिकारी ऐसा नहीं करता है तो जन शिकायत सुनने वाले अधिकारी के पास शिकायत। अगर शिकायत के बाद भी ३० दिनों में काम नहीं होता है तो लोकपाल को सूचना। लोकपाल जन शिकायत निवारण अधिकारी से जानकारी लेगा और उचित जुर्माना लगाएगा, जो संबंधित अधिकारी के वेतन से काटा जाएगा। उचित विभाग को तय समय में शिकायत दूर करने का निर्देश देगा।

सरकार का नज़रिया
इस पर सरकार के बिल में कोई प्रस्ताव नहीं है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा
टीम अन्ना का नज़रिया
लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को  सुरक्षा मुहैया कराएगा। अगर ऐसे लोग परेशान किए जाने की शिकायत करते हैं, तो तेजी से मामले की सुनवाई।
सरकार का नज़रिया
ऐसे लोगों को एक अलग कानून बनाकर सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
झूठी शिकायत
टीम अन्ना
जेल की सज़ा नहीं। सिर्फ आर्थिक जुर्माना। शिकायत कैसी है, इसका फैसला लोकपाल करेगा।
सरकारी लोकपाल
२ से ५ साल की सज़ा। जिस पर आरोप लगा है, वह आरोप लगाने वाले पर विशेष कोर्ट में शिकायत कर सकता है। ऐसे मामलों में सरकार वकील मुहैया कराएगी। मूल शिकायतकर्ता को देना होगा जुर्माना।
भ्रष्ट अफसरों की बर्खास्तगी
टीम अन्ना
जांच पूरी हो। कोर्ट में मामला दर्ज होगा। लोकपाल की एक बेंच इस बारे में सुनवाई करेगी और फैसला करेगी कि संबंधित अधिकारी को हटाना है या नहीं।
सरकारी राय
संबंधित मंत्रालय के मंत्री इस का फैसला करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को हटाना है या नहीं।
भ्रष्टाचार की सज़ा  
टीम अन्ना
अधिकतम सज़ा उम्रकैद। अधिकारी का स्तर जितना ऊपर होगा, सज़ा उतनी ही ज़्यादा होगी। अगर जिस पर आरोप लगा है, वह औद्योगिक घराने से जुड़ा है, तो जुर्माना ज़्यादा होगा। साथ ही उस औद्योगिक घराने को काली सूची में डाला जाएगा।
सरकार का पक्ष
अधिकतम सज़ा की सीमा १० साल। अन्य किसी भी बिंदु पर सहमति नहीं।
किसी भी मामले में आगे होने वाले भ्रष्टाचार के केस
टीम अन्ना
किसी भी मामले में आगे होने वाले घोटाले की जानकारी अगर लोकपाल के संज्ञान में लाए जाने पर वह सरकार को सिफारिशें करेगा। अगर सरकार सिफारिशें नहीं सुनती है तो लोकपाल हाई कोर्ट में अपील करेगा और जरूरी आदेश हासिल करेगा।
सरकारी नज़रिया
लोकपाल के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होगी।
क्या सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा को लोकपाल में मिला दिया जाए?
टीम अन्ना की राय
हां, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा को पूरी तरह से स्वतंत्र किया जाए। यह लोकपाल की जांच टीम के तौर पर काम करेगी।
सरकारी नज़रिया
नहीं, सीबीआई केंद्र सरकार के तहत काम करेगा। सीबीआई भ्रष्टाचार से जुड़े मामले की जांच के लिए सरकार से इजाजत लेगी। अगर सुबूत पाए भी जाते हैं तो भी सरकार की इजाजत के बिना कोर्ट में मामला नहीं पेश किया जा सकता है।
लोकपाल किसको जवाबदेह होगा?
टीम अन्ना का नज़रिया
लोकपाल लोगों के प्रति जवाबदेह होगा। कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में लोकपाल के किसी सदस्य के खिलाफ शिकायत कर सकता है उसे हटाने की मांग कर सकता है।
सरकार का नज़रिया
लोकपाल सरकार के प्रति जवाबदेह होगा। केवल सरकार ही लोकपाल को हटा सकती है।
लोकपाल के सदस्यों का चुनाव
टीम अन्ना का नज़रिया
चुनाव समिति में चार जज,  दो नेता और दो नौकरशाह शामिल होंगे। संवैधानिक पदों से रिटायर हुए सदस्यों वाली स्वतंत्र समिति पहली सूची तैयार करेगी। पारदर्शी चयन प्रक्रिया।
सरकार का नजरिया
चयन समिति में पांच नेता, दो जजों के अलावा सरकार की तरफ नियुक्त एक सम्मानित शख्स। यह समिति एक सर्च कमेटी बनाएगी। कोई चयन प्रक्रिया नहीं। सब कुछ चयन समिति पर निर्भर।
लोकपाल स्टाफ की निष्ठा
टीम अन्ना की राय
लोकपाल स्टाफ के खिलाफ शिकायत होने पर स्वतंत्र एजेंसी से जन सुनवाई। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो यह अथॉरिटी मुकदमा चलाने की अनुमति देगी जो हाई कोर्ट के न्यायिक दायरे के तहत आएगा।
सरकारी राय
लोकपाल स्टाफ के खिलाफ शिकायत होने पर लोकपाल खुद इसकी जांच करेगा। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो मुकदमा चलाने की इजाजत।
वित्तीय स्वतंत्रता
टीम अन्ना का नजरिया
देश के सरकारी खजाने से लोकपाल को फंड मिलेगा। फंड कितना होगा, इसका फैसला लोकपाल के सदस्य करेंगे (यह किसी भी स्थिति में कुल राजस्व के ०.२५ फीसदी से ज़्यादा नहीं होगा)।
सरकारी राय
लोकपाल को सरकारी खजाने से फंड मिलेगा। लेकिन फंड कितना होगा, इसका फैसला वित्त मंत्रालय करेगा।
शक्तियों का बंटवारा
टीम अन्ना की राय
लोकपाल सिर्फ वरिष्ठ नेताओं, नौकरशाहों या उन मामलों की जांच करेगा जिनमें बड़ी राशियां शामिल हैं।
सरकार की राय
सारे काम लोकपाल समिति के नौ सदस्य ही करेंगे।
हाई कोर्ट में विशेष बेंच
टीम अन्ना की राय
हाई कोर्ट विशेष बेंच का गठन करेगा ताकि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की तेजी से सुनवाई हो सके।
सरकारी लोकपाल
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
सीआरपीसी में बदलाव
टीम अन्ना की राय
अदालतों में भ्रष्टाचार निरोधी मामले काफी समय लेते हैं, जिसकी वजह से एजेंसियां केस हार जाती है। इसलिए सीआरपीसी में बदलाव की सिफारिशें।
सरकारी राय
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
फोन टैपिंग
टीम अन्ना की राय
लोकपाल की बेंच इसके लिए अनुमति देगी।
सरकारी राय
गृह सचिव इसके लिए इजाजत देगा।
एनजीओ
टीम अन्ना की राय
केवल सरकारी ग्रांट पाने वाले एनजीओ इसके दायरे में आएंगे।
सरकारी राय
बड़े-छोटे सभी संगठन इसके दायरे में आएंगे चाहे वे रजिस्टर्ड हों या नहीं।

Monday, 22 August 2011

लोग मेरे गांव के

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के

कह रही है झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के

बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे है लोग मेरे गांव के

चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से
बेड़िया खनका रहे हैं लोग मेरे गांव के

लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गांव में
अब इकटठे हो रहे हैं लोग मेरे गांव के

कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गांव के

दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गांव के

एकता से बल मिला है झोपडी की साँस को
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गांव के

देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गांव के

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के

लो मशालों को जगा डाला किसी ने। आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नहीं है। 
टोलियां जत्‍थे बना कर चीख यूं चलती नहीं है। रात को भी देखने दो आज तुम सूरज के जलवे। 
तब तपेगी ईंट तभी होश में आएंगे तलवे। तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने। 
लो मशालों को जगा डाला किसी ने। भोले थे अब कर दिया भाला किसी ने।