Saturday, 27 August 2011

गांघीगीरी की नई मिसाल


धरती प्यार की, सहकार की, और अहिंसा की, धरती जिसने दुनिया को केवल शून्य की सौगात ही नहीं सौंपी बल्कि सौंपा निहत्थे होने का हथियार जिसने पूरी दुनिया में एक बार फिर अपना परचम लहराया। इतिहास गवाह है फ्रांस और रूस की क्रांति का, इतिहास गवाह है इटली और आयरलैंड के स्वाधीनता संग्राम का, इतिहास गवाह है बीसवीं सदी के तीसरी दुनिया के सबसे बड़े माओ विद्रोह का लेकिन ये सारी क्रांतियां एक तरफ और भारत की बात एक तरफ।  दुनिया में हुई अब तक एक भी ऐसी क्रांति नहीं जो हथियारबंद लोगों से बिना हथियारों के ही लड़ी गई हो और जीती गई

ये तो हुई गुजरे हुए कल की बात लेकिन आज की दुनिया भी इस वक्त एक ऐसी ही मिसाल की साक्षी है जिस पर हर पल सबकी नजरें लगी हुई हैं। दुनिया के सामने आज एक तरफ सीरिया, मिस्र और लीबिया जैसे खूनी विद्रोह हैं तो दूसरी तरफ हिंदुस्तान की नजीर जहां लाखों लोग हाथों में हथियारों की जगह बैनर, पोस्टर, तिरंगे और रौशनी के काफिले सजाए अपनी बात बुलंद कर रहे हैं,और इन सब में सबसे खास बात ये है कि इन क्रांतिवीरों में सबसे बड़ी संख्या में वही युवा शामिल हैं जो जोश के चक्कर में होश गवां बैठने के लिए अक्सर बदनाम किए जाते हैं लेकिन मजाल क्या कि किसी ने भी संयम तोड़ने की बात भी सोची हो। साफ है कि अगर नेतृत्व की अपील में ताकत हो तो, दिशा हो, और मिसाल बनने की काबलियत हो तो किसी भी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ा जा सकता है। चिंगारियों से घर जलाने के बजाय घर को रौशन भी किया जा सकता है, और गांधी के बाद दूसरे गांधी के भी इसी प्रयोग पर आज सारी दुनिया की निगाहें लगी हैं, साथ ही छिड़ गई है फिर नई बहस कि क्या प्रेम की क्रांति ही दुनिया की भावी क्रांतियों की एक मात्र अगुआ होगी, जाहिर है जननायक अन्ना के जरिये भारत ने फिर से ऐसी ही अगुआई कर दुनिया की राह आसान कर दी है

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